नववर्ष पर पंजाब आ रही है सोनी सोरी
Soni Sori is Coming to Punjab: 26th November, 2022: कई बरसों से चर्चा में चली आ रही सोनी सोरी (Soni Sori) नव वर्ष पर पंजाब आ रही है। नव वर्ष की पहली तारीख को उसका विशेष आयोजन लुधियाना में होगा। यह आयोजन जम्हूरी अधिकार सभा (Association for Democratic Rights) और अन्य सहयोगी जन संगठनों की तरफ से होना है। इस आशय की एक विशेष बैठक लुधियाना (Ludhiana) में जसवंत जीरख (Jaswant Zirakh) की अध्यक्षता में की गई। शहीद भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh) के भान्जे प्रोफेसर जगमोहन सिंह (Prof. Jagmohan Singh) और उनके वशिष्ठ साथी प्रोफेसर ऐ के मलेरी (Prof. A K Maleri) इस मीटिंग में मौजूद रहे।
सोनी सोरी ने नक्सलियों का दमन भी झेला और पुलिस का टॉर्चर भी
इतना कुछ सहने के बाद अब भी वह आदिवासियों (Tribals) की भलाई के लिए सक्रिय है। छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का इलाका उसकी जन्मभूमि रहा है। गौरतलब है कि सोनी सोरी का जन्म 1975 में हुआ था। मेहनत मज़दूरी करने वाले माहौल में जन्मी सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा (Dantewara) जिले में स्थित जबेली गाँव की एक आदिवासी विद्यालय शिक्षिका (School Teacher) हैं। उस पर सन् 2011 में पुलिस द्वारा यह इल्जाम लगाया गया कि वे नक्सलियों (Naxalites) को सूचनाएं उपलब्ध करवाती हैं। सोनी सोरी को दिल्ली (Delhi) में गिरफ्तार कर लिया गया और छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया गया। कोर्ट में पेशी से पहले इन्हें दो दिन की पुलिस हिरासत में रखा गया, जहां छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा उन्हें नंगा किया गया और बिजली के झटके लगाए गए। थर्ड डिग्री टॉर्चर (Third Degree Torture) की वजह से कोर्ट में पहले दिन पेशी के दौरान वे चल भी नहीं पा रहीं थीं। बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतंत्र जांच करवाए जाने पर उनके जननांग में तीन पत्थर पाए गए। सोनी सोरी को कोर्ट में पेशी के बाद जेल भेज दिया गया। ढाई साल की यातनापूर्ण कैद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्थाई जमानत प्रदान कर दी।
आठ आरोपों में से सात आरोप झूठे साबित हुए
छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा लगाए गए आठ आरोपों में सात झूठे निकले जबकि एक में उन्हें जमानत मिल गई। इस सारे घटनाक्रम ने सोनी सोरी को दुनिया भर में चर्चित कर दिया। पुलिस और नक्सलियों को गलत साबित करने में उन्हें 11 साल लग गए। बहुतों को तो ये लगा कि या तो पुलिस हिरासत में उसकी मौत की खबर आ जाएगी या फिर एनकाउंटर की। समाजिक संगठनों ने उसके हक़ में देश भर में अभियान चलाया और जनवादी मीडिया ने उसके बारे में बहुत बार खुल कर लिखा।
बस्तर के आदिवासियों के लिए कर रही हैं काम
वर्तमान में सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर हो रहे क्रूर हमलों का विरोध कर आदिवासियों को न्याय दिलाने की दिशा में काम कर रही हैं। बस्तर (Bastar) में फर्जी मुठभेड़ों, आदिवासियों महिलाओं के साथ सुरक्षाकर्मियों द्वारा बलात्कार समेत तमाम आदिवासी उत्पीडऩ के मुद्दों को सोनी सोरी ने राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है, जिससे वह छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन के निशाने पर हैं। हिमांशु कुमार उसके संघर्ष पर गर्व करते हुए अक्सर सक्रिय सहयोग देते हैं। महिला संगठनों के लिए भी सोनी सोरी संघर्ष एक मिसाल बन कर उभरी है।
पिछले दो दशकों से बस्तर के आदिवासी (Tribals), पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे हैं। कभी पुलिस द्वारा तो कभी नक्सलियों द्वारा आदिवासियों को मारने की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। दोहरे भय के कारण हजारो आदिवासी बस्तर छोडने पर मजबूर हो गए हैं। बस्तर एक युद्धक्षेत्र बन गया है, जहां पुलिस और नक्सलियों की गोलियां चलती हैं और मरता है सिर्फ आदिवासी। इस सारी स्थिति से जो लोग दुखी हैं उनमें सोनी सोरी भी है।
उल्लेखनीय है कि बस्तर में आदिवासियों के लिए जो भी कुछ करता है, वह पुलिस और प्रशासन के निशाने पर आ जाता है। शायद यहीं कारण है कि सोनी सोरी भी निशाने पर हैं।
वर्तमान में सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर हो रहे क्रूर हमलों का विरोध कर आदिवासियों को न्याय दिलाने की दिशा में काम कर रही हैं। बस्तर (Bastar) में फर्जी मुठभेड़ों, आदिवासियों महिलाओं के साथ सुरक्षाकर्मियों द्वारा बलात्कार समेत तमाम आदिवासी उत्पीडऩ के मुद्दों को सोनी सोरी ने राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है, जिससे वह छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन के निशाने पर हैं। हिमांशु कुमार उसके संघर्ष पर गर्व करते हुए अक्सर सक्रिय सहयोग देते हैं। महिला संगठनों के लिए भी सोनी सोरी संघर्ष एक मिसाल बन कर उभरी है।
पिछले दो दशकों से बस्तर के आदिवासी (Tribals), पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे हैं। कभी पुलिस द्वारा तो कभी नक्सलियों द्वारा आदिवासियों को मारने की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। दोहरे भय के कारण हजारो आदिवासी बस्तर छोडने पर मजबूर हो गए हैं। बस्तर एक युद्धक्षेत्र बन गया है, जहां पुलिस और नक्सलियों की गोलियां चलती हैं और मरता है सिर्फ आदिवासी। इस सारी स्थिति से जो लोग दुखी हैं उनमें सोनी सोरी भी है।
उल्लेखनीय है कि बस्तर में आदिवासियों के लिए जो भी कुछ करता है, वह पुलिस और प्रशासन के निशाने पर आ जाता है। शायद यहीं कारण है कि सोनी सोरी भी निशाने पर हैं।